डॉ. रामबली मिश्र
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हरिहरपुरी की कुण्डलिया
पाता वह सम्मान है, जो देता सम्मान।
जो करता अपमान है, वह पाता अपमान।।
वह पाता अपमान, अस्ति को है खो देता ।
होता है उपहास, नहीं है कुछ कर लेता।।
कहें मिसिर कविराय, खुला है सब का खाता।
जमा राशि है कर्म, व्याज जिस का वह पाता।।
Sachin dev
31-Dec-2022 06:09 PM
Well done
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
31-Dec-2022 09:01 AM
बेहतरीन
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Sachin dev
31-Dec-2022 06:09 PM
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
31-Dec-2022 09:01 AM
बेहतरीन
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